Supreme Court on Election Commission : क्या सरकार कोर्ट के फैसले को मानेगी? या संसद ही कोर्ट के इस फ़ैसले को पलट देगी? जानें पूरी डिटेल



नई दिल्ली : दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश के तौर पर भारत की राजनीतिक हमेशा सक्रिय रहती है। भारत में ऐसा कोई साल नहीं जब कोई ना कोई चुनाव हुआ हो। हर साल क्या हर दो-तीन महीने में भारत में कहीं विधानसभा चुनाव तो कहीं उपचुनाव तो कहीं निकाय चुनाव होते रहते हैं। मतलब मानों भारत हमेशा चुनावी मोड में होता है।


देश में चुनाव कराने का काम स्वायत संस्था भारत निर्वाचन आयोग यानी चुनाव आयोग करता है। भारतीय संविधान के तहत संसद और प्रत्येक राज्य के विधान सभा और विधान मंडल, राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति के पदों के निर्वाचन यानी चुनाव के संचालन की पूरी प्रक्रिया का संचालन और नियंत्रण भारत निर्वाचन आयोग को सौंपा गया है। आयोग का अपना अलग सचिवालय है जिसमें लगभग 300 अधिकारी और कर्मचारी के रूप में कार्य करते हैं। 


सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को चुनाव आयोग को लेकर बड़ा फैसला सुनाया। सर्वोच्च अदालत ने मुख्य निर्वाचन आयुक्त (CEC) और निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति के लिए पैनल बनाने का फैसला दिया। इस पैनल में प्रधानमंत्री, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष या सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के नेता और चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया शामिल होंगे। यही पैनल मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों का चयन करेगी। हालांकि, अंतिम फैसला राष्ट्रपति का ही होगा। 


कोर्ट के इस आदेश के बाद सबसे बड़ा सवाल ये खड़ा हो रहा है कि आखिर ये फैसला इतना अहम क्यों है? इससे चुनावी प्रक्रिया पर क्या असर पड़ेगा? क्या सरकार कोर्ट के इस फैसले को चुनौती दे सकती है? ये फैसला कब से लागू किया जा सकता है


कोर्ट ने अपने फैसले में क्या कहा? 

मुख्य निर्वाचन आयुक्त (सीईसी) और निर्वाचन आयुक्तों (ईसी) की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम जैसी व्यवस्था बनाने की मांग को लेकर याचिका दायर हुई थी। इस पर गुरुवार को न्यायमूर्ति केएम जोसेफ की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने फैसला सुनाया। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि प्रधानमंत्री, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष या सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के नेता और चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया की कमेटी मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों का चयन करेगी। हालांकि, नियुक्ति का अधिकार राष्ट्रपति के पास ही रहेगा। पीठ में न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी, न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस, न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय और न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार भी शामिल थे। खास बात है कि सुप्रीम कोर्ट ने ये फैसला सर्वसम्मत से सुनाया है।

 


अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद चुनाव आयोग और देश में होने वाले चुनावों में तीन बड़े बदलाव देखने को मिल सकते हैं

 


1. जब मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति पारदर्शी तरीके से होगी और पैनल की सिफारिशों पर होगी तो चुनाव आयोग स्वतंत्र होकर काम कर सकेगा। चूंकि आयुक्तों की नियुक्ति प्रक्रिया में विपक्ष का नेता भी शामिल होगा, इसलिए चुनाव के बाद आयोग पर विश्वास बढ़ेगा। 

 


2. दूसरा बदलाव ये हो सकता है कि अब तक चुनाव के दौरान नेताओं, उम्मीदवारों पर कई तरह के आरोप लगते रहे हैं। मामले भी दर्ज होते हैं और चुनाव आयोग में शिकायतें भी होती हैं, लेकिन कार्रवाई नहीं हो पाती। भले ही चुनाव आयोग को स्वतंत्र कहा जाता है लेकिन हमेशा सत्ता पक्ष के दबा में काम करने का आरोप भी लगता रहा है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद चुनाव आयोग के पास रूल पॉवर भी गई है। ऐसे में आयोग स्वतंत्र होकर राजनीतिक दलों और नेताओं पर कार्रवाई कर पाएगा।  

 


3. और तीसरा बदलाव ये होगा कि अभी तक सत्ता में बैठी पार्टी मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त बनाती थी, चूंकि अब  इनका चयन पैनल के जरिए होगा, ऐसे में नियुक्ति प्रक्रिया में कुछ योग्यता भी परखी जाएगी। इससे अनुभवी और चुनाव के एक्सपर्ट लोग इन पदों पर बैठ सकेंगे। 

 


लेकिन क्या सरकार कोर्ट के इस फ़ैसले को मानेगी? या फिर चुनौती देगी? वैसे तो कोर्ट के किसी भी फैसले को चुनौती दी जा सकती है। हालांकि, इस मामले में केस थोड़ा अलग है। पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने एकमत होकर फैसला सुनाया है। ऐसे में इतिहास देखें तो जब भी एकमत होकर कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने कोई फैसला दिया है तो चुनौती के बाद भी वह कम ही बदला है। बल्कि के बराबर बदलाव हुआ है। इस मामले में भी ऐसा ही है। सरकार चुनौती दे सकती है, लेकिन कोर्ट का ये फैसला बदलना मुश्किल है। लेकिन संसद अगर चाहे तो कोर्ट का ये फैसला बदल सकती है। जो मौजूदा हालात में हो भी सकता है।

 


जैसे की पहले चुनाव आयुक्त की नियुक्ति प्रधानमंत्री और मंत्रिमंडल की सिफारिश के बाद राष्ट्रपति की ओर से की जाती है। आमतौर पर देखा गया है कि इस सिफारिश को राष्ट्रपति की मंजूरी मिल ही जाती है। इसी के चलते चुनाव आयुक्त की नियुक्ति को लेकर सवाल खड़े होते रहे हैं। चुनाव आयुक्त का एक तय कार्यकाल होता है, जिसमें 6 साल या फिर उनकी उम्र को देखते हुए रिटायरमेंट दिया जाता है। चुनाव आयुक्त के तौर पर कोई सेवानिवृत्ति की अधिकतम उम्र 65 साल निर्धारित की गई है। यानी अगर कोई 62 साल की उम्र में चुनाव आयुक्त बनता है तो उन्हें तीन साल बाद ये पद छोड़ना पड़ेगा। रिटायरमेंट और कार्यकाल पूरा होने के अलावा चुनाव आयुक्त कार्यकाल से पहले भी इस्तीफा दे सकते हैं और उन्हें हटाया भी जा सकता है। उन्हें हटाने की शक्ति संसद के पास होती है।

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